नई दिल्ली। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। यही कारण है कि केंद्र सरकार की तरफ से दो साल पहले इलेक्ट्रिक वाहनों पर केंद्र सरकार ने GST की दरों को 12 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी कर दिया था। वहीं, राज्य सरकारों की तरफ से भी इलेक्ट्रिक वाहनों पर कई अलग-अलग सब्सिडी दी जा रही हैं। पिछले साल फरवरी महीने में हुए ऑटो एक्सपो 2020 (Auto Expo 2020) में इलेक्ट्रिक वाहनों का एक तरफा दबदबा देखने को मिला था। ऐसे में हमने इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े तमाम सवालों और ऑटो सेक्टर के मौजूदा हालात पर & के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर करन शाह () से Exclusive बातचीत की। ये रहे उसके कुछ अंश... सवाल: भारत में पिछले कुछ सालों में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में तेजी दर्ज की गई है। आप भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के सेगमेंट में दूसरे देशों के मुकाबले अभी कैसे देखते हैं? जवाब: भारत सरकार, फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाईब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स यानी फेम (FAME) नाम के स्किम के तहत इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की मांग को बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और सरकार इसके लिये बहुत हद तक महत्वकांक्षी भी है। इसके अलावा, नेशनल मिशन ऑन ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज के माध्यम से डॉमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने से भी इस योजना को बल मिला है। साथ ही, इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में सुधार जारी है और नए बिजनेस मॉडल को लगातार मिल रही स्वीकृति से भारत का इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का बाजार आने वाले दशक में एक बड़ा मक़ाम हासिल करने को तैयार है। भारत में प्रति 1000 व्यक्ति में से 22 लोगों के पास कार हैं , वहीं अमेरिका में ये संख्या 980 जबकि यूनाइटेड किंगडम में 850 तक है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि भारत और दुनिया के इन विकसित देशों के बीच का ये अंतर, भारतीय कंपनियों को एक जबरदस्त क्षमता और मौका देता है जिससे वे ऑटोमोबाइल के बाज़ार में अपनी एक परिपक्व स्थान हासिल कर सकते हैं। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहनों के इस आवागमन की राह में कुछ अड़चने भी हैं जिनको पूरी तरह ठीक करने में काफी वक्त लगेगा। जैसे चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव और फिर गाड़ियों के मेंटेनेंस की जानकारी जैसे कुछ अहम समस्या है। इसके अलावा ग्राहकों के मन में नये-नवेले तकनीक के प्रति एक डर या फिर एक हिचकिचाहट और सामान्य गाड़ियों की तुलना में इलेक्ट्रिक कार की कीमतों में एक बड़ा अंतर भी ऐसी कुछ चुनौतियां हैं, जिन्हें ठीक करने की जरूरत है। सवाल: भारत सरकार और राज्य सरकारों की तरफ से इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने साल 2019 में इलेक्ट्रिक वाहनों पर GST की दरों को 12 फीसदी से घटा कर 5 फीसदी कर दिया। 2 साल बाद आप सरकार से इलेक्ट्रिक वाहनों के सेगमेंट में किस तरह की मदद की उम्मीद करते हैं? जवाब: ये ठीक बात है कि सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर लगने वाले GST को काफी कम किया है, लेकिन गाड़ियों के खरीदे जाने से पहले सरकार को समूचे देश में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत / बेहतर / विकसित करने की जरूरत है। इसके अलावा सरकार को सब्सिडी और दूसरे तरह के मदद को उन स्टार्टअप्स को, ओइएम्स यानी वाहन के पार्ट्स प्रोड्यूस करने वाले कंपनियों को मुहैया कराने की जरूरत है जो कि भारत में इस तकनीक को लोकलाईज करने में जुटे हुए हैं। बहुत सारे देशों ने मसलन अमेरिका, नीदरलैंड, स्वीडन आदि ने ओइएम्स को या फिर ग्राहकों को सीधा नगद सब्सिडी और दूसरे छूट दिए हैं। ये मॉडल भारत में भी काम में लाया जा सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों के मार्केट में आने के साथ रिट्रोफिटिंग वाले जगह मुहैया कराना जहां चार्जिंग के मांग को बढ़ाने, इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरे जरूरी सेवाओं को बेहतर बनाने की व्यवस्था हो। सवाल: कोरोना महामारी से भारतीय ऑटो सेक्टर को पिछले साल काफी नुकसान हुआ, लेकिन वित्तवर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में काफी तेजी से सुधार दर्ज की गई। लेकिन, अब देश में कोरोना की दूसरी लहर देखी जा रही है। ऐसे में आप कोरोना काल में या आने वाले कुछ महीनों में भारतीय ऑटो सेक्टर की स्थिती को कैसे देखते हैं? जवाब: वाहन उद्योग में लगातार 2 साल (2019 और 2020 ) मंदी देखी गई।आर्थिक वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में भी वाहन उद्योग के अच्छे दिन आ रहे थे, लेकिन इसी बीच कोविड-19 की दूसरी लहर आ गई। इस दूसरी लहर के कारण वाहन उद्योग पर निश्चित रूप से नकारात्मक प्रभाव होगा, क्योंकि लॉकडाउन आदि के कारण वाहनों की बिक्री में रुकावट आएगी। हालांकि, दूसरी ओर, हमने कॉमर्शियल वाहनों के साथ-साथ भारत में ट्रैक्टरों की बिक्री में पिछले जबरदस्त उछाल देखा है, जो आगे भी जारी रहने की अपेक्षा है। कोविड-19 महामारी के कारण इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार को बड़ी चुनौती मिल सकती है, क्योंकि महामारी के कारण लोगों के आय पर असर हुआ है, और क्योंकि पारंपरिक वाहन ईवी की तुलना में सस्ते आते है इसलिए लोगों का झुकाव पारंपरिक वाहनों के तरफ ही ज्यादा रहेगा। सवाल: हाल ही में भारत सरकार की तरफ से स्क्रैपेज पॉलिसी को घोषणा की गई। इस फैसले का कॉर्पोरेट जगत ने काफी सराहना की। सरकार के इस फैसले को आप कैसे देखते हैं। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था और ऑटो सेक्टर में आप सरकार के इस कदम को कितना क्रांतिकारी मानते हैं? जवाब: नई स्क्रेपेज पॉलिसी निश्चित रूप से भारत में प्राइवेट व्हीकल्स और कॉमर्शियल व्हीकल्स की बिक्री को बढ़ावा देगी - चाहे वो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स हों या इंटरनल कम्बशन व्हीकल्स। आखिरकार, ये नीति व्हीकल्स को लगातार समझने में मदद करेगी जो ये सुनिश्चित करेगी कि हमारे पास कम प्रदूषण वाले सुरक्षित व्हीकल्स सड़क पर हों। कुल मिलाकर, स्क्रेपेज पॉलिसी में ये वादा किया गया है कि इसके ज़रिये 10,000 करोड़ रुपये का निवेश कर 50,000 नए रोजगार के अवसरों को पैदा किया जा सकता है। सवाल: हम सब ने देखा कि कोरोना काल के दौरान चीन से आयात किए जाने वाले ऑटो पार्ट्स की सप्लाई प्रभावित हुई, जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से 'Aatma Nirbhar Bharat' का नारा दिया गया। आप इस मूहीम को भारतीय ऑटो सेक्टर के लिए कितना जरूरी मानते हैं। क्या यह एक बदलाव की शुरुआत है? या आपको लगता है कि जैसे स्थिती दोबारा से सामान्य होगी हम फिर से चीन पर निर्भर हो जाएंगे? जवाब: 'आत्मनिर्भर भारत' बनने की इच्छा निश्चित रूप से महत्वकांक्षी और काम आने वाले चाह है लेकिन फिलहाल, हम इससे बहुत दूर हैं। भारत में बहुत से इंडस्ट्रीज अब भी न केवल चीन पर निर्भर हैं बल्कि वे कई दूसरे देशों पर भी सामान और टेक्नोलॉजी के आयात के लिहाज से निर्भर हैं। भारत में 4 बड़े ऑटोमैन्युफैक्टरिंग हब हैं। इनमें उत्तर में दिल्ली-गुड़गांव-फरीदाबाद, पश्चिम में मुंबई-पुणे-नाशिक-औरंगाबाद बेल्ट, दक्षिण में चेन्नई- बेंगलुरु-होसुर और पूर्व में जमशेदपुर-कोलकाता। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ने वित्त वर्ष 2018-19 में करीब 31 मिलियन यानी 3 करोड़ 10 लाख व्हीकल्स को बनाया जिसमें पैसेंजर व्हीकल्स/ यात्री वाहन, कॉमर्शियल व्हीकल्स / वाणिज्यिक वाहन, तीन पहिया वाहन, दो पहिया वाहन और चार पहिया साईकिल शामिल थे। साथ ही, वित्त वर्ष 2018-19 में मैन्युफैक्चर किये गए 30.9 मिलियन यानी तकरीबन 3 करोड़ 10 लाख वाहनों में से भारत ने 4.6 मिलियन यानी तकरीबन 46 लाख वाहनों का निर्यात किया। अब ये भारतीय उद्यमियों और उद्योगों पर निर्भर है कि वे आत्मनिर्भर बनने के लिए सप्लायर्स और टेक्नोलॉजी वेंचर्स का एक इकोसिस्टम बनाएं। और इस इकोसिस्टम के बनने के दौरान पूंजी, बुनियादी ढांचे के स्तर पर सरकार की तरफ से मदद दी जा सकती है। सवाल: Retrofitting solutions के बारे में आप क्या बताना चाहेंगे? जवाब: 2030 तक भारतीय सड़कों पर बसों की संख्या 3 मिलियन यानी 30 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है। इसी तरह, दूसरे सार्वजनिक परिवहन की संख्या में भी इसी गति से इज़ाफ़ा होना तय है। अगर हम सिर्फ कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के नाम पर मौजूदा बसों के फ्लीट में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को शामिल करते चले जायेंगे, तो हमारे शहर की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ इकट्ठी हो जाएगी। ऐसे में, व्यवहारिक समाधान ये है कि मौजूदा व्हीकल्स को रेट्रोफिटिंग के माध्यम से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में अपग्रेड किया जाय, साथ-ही-साथ, सीमित संख्या में इलेक्ट्रिक वाहनों को जोड़ा जाए। ये न केवल वाहनों की संख्या को भी सीमित रखेगा बल्कि हमारे व्हीकल्स से निकलने वाले कार्बन इमिशन को भी कम करेगा।
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